Saturday 21 December 2013

ये कैसी आहट

ये कैसी आह्ट,कैसी दस्तक है,
नींद से उठ-उठ कर देखती हूँ,
कौन है जो दूर से सदा दे रहा,
क्यों मुझे गाहे-बेगाहे परेशां कर रहा,
यूँ कुछ हमारे भीतर तमन्नायें जगा रहा,
मानों कितनी सदी से इबादत कर रहा,
दिल बेगाना हुआ,धड़कने भी बस में न रही,
कोई तो ईशारा करे,कोई तो नज़र आये,
कैसे करूँ दीदार तेरा,गुफ्तगू करूँ कैसे,
दूर से सदा देते,पास आ छूते सिहरा जाते,
तुम्हारी मौजूदगी भरमाती मुझे,आवारगी सताती मुझे,
हो तुम कोई हक़ीक़त या रूह का कोई फ़साना,
या हमारे अंतर की दबी-अधूरी तिश्नगी,
उम्र भर सताते रही ,हलक जलाते रही,
हिज्र कि हर शाम यूँ गुजारी तेरे बगैर हमने,
मानो  ओस कि बूंदों से प्यास बुझाई हमने। 

Saturday 23 November 2013

कहानी---ये प्यार है या कुछ और है

            छोटी सी,पतली सी,सांवली,मामूली नक्-नक्श,जीर्ण-शीर्ण काया की लड़की कुछ दुरी पे बैठी है।लीजरपीरियड हमलोगों के चल रहे हैं तो दोस्तों के साथ मैदान में बैठ हंसी-मजाक,बतकही चल रही है। मेरी दोस्त उसलड़की के लिये बताना शुरू की तबतक वो उठकर शायद क्लास करने चली गई "इस लड़की का एक प्रेमी है ,दोनों एक ही गाँव के रहनेवाले हैं ,लड़की दलित है और लड़का सवर्ण। जाने कैसे क्या हुआ था पूरा तो नहीं जानती पर हाँ लड़का इसकी पूरी जिम्मेवारी उठा लिया है ,शादी-ब्याह तरह का कुछ होगा की नहीं पर लड़का सभी के सामने कुबूल करता है की वो इससे प्यार करता है गार्जियन की तरह इसकी देखभाल करता है ,हर दुसरे-तीसरे दिन पर वो कॉलेज आयेगा ,उसकी देखभाल करता है ,उसकी हर आवश्यकता पूरी करता है ,घंटों मैदान में बातें करता रहता है ,सप्ताह में एकदिन बाहर भी ले जाता है ,पूरा कॉलेज इसबात का गवाह है "मै दिलचस्पी लेकर सुन रही थी ,गाँव की पृष्ठभूमि मेरी भी है इसलिये जात-पात,भेद-भाव,रुढीवादिता ,उंच-नीच,इन शब्दों का अर्थ मै बखूबी समझती हूँ। फिर इस लड़का-लड़की का सम्बन्ध?माथा साथ नहीं दे रहा था पर कुछ न कुछ गूढ़ कहानी जरुर है। "अरे यार भगवान की भी बेइंसाफी समझ नहीं आती ,बिन मांगे किसी को छप्पर फाड़ दिये और हमलोग पूरा दामन फैलाये बैठें हैं तो भगवानजी का कान बंद "मुझे दोस्त का ठुह्का लगा और मै सोच से बाहर आ गई,फिर तो हंसी-मजाक ,ठहाकों के बीच हमलोग उठकर क्लास करने चल दिये। बात आई-गई हो गई ,चंचल मन था ,छोटी उम्र थी ,कुछ ही दिनों में इसबात को भूल दूसरी बातों में ध्यान लग गया। 
                       हमारे कॉलेज के दिन पढाई,हंसी-मजाक और नितनवीन शरारतों में गुजरते जा रहे
थें ,कुछेक महीने हो चले थें ,गेट पे पहुंची ही थी की कालेज के अंदर से उसी दलित लड़की को एक लड़के के साथ बाहर  निकलते देखी और मै यूँ चौंकी जैसे सांप सूंघ गया ,वो लड़का इतना सुन्दर,सुघड़,स्मार्ट था की मै अवाक् सी हो गई ,मेरी दोस्त केहुनी मारी "यही है यार देखो ,उस लड़के के सामने ये लड़की कैसी लग रही है ,हाँ ये दीगर बात है की किस्मत बेजोड़ है ,रूप रोये भाग्य टोये "मै सब सुन के भी न सुन पा रही थी। वो लड़की कॉलेज के एक किरानीबाबू को चाचाजी प्रणाम कहके उस लड़के के साथ कहीं बाहर चली गई। जाने कैसी इर्ष्या का भाव मन में उत्पन्न हो रहा था ,कॉलेज की सुंदर लड़कियों में मेरी गिनती होती थी और पढाई में भी मेरी तूती  बोलती थी ,क्या भाव जग रहे थें मुझमे समझ नहीं आ रहे थें,बस लगता था ये प्यार नहीं हो सकता। भगवान को क्या पड़ी थी जो इतनी बड़ी कहानी को जामा पहना चमत्कार कर रहें हैं  मै इसी भावावेश तहत ऑफिस के उसी बाबू  के पास पहुँच गई जिसे वो लड़की चाचाजी कहके प्रणाम की थी ,"मानिकपुर गाँव है बच्ची ,वहां सभी जाति  का टोला है पर ठाकुरों का वर्चस्व चलता है। लड़की दुसाध जाति  की है और लड़का सवर्ण। लड़की के परिवार में १-२ सर्विसवाले हो गए हैं ,इनके टोला में भी कुछ पढ़े-लिखे हैं जो अच्छे पदों पे कार्यरत हैं ,यानी की दलितलोगों में उत्थान है अतः ये लोग भी ठाकुरों के सामने सर उठाने लगे हैं। लड़का-लड़की एक ही उम्र के हैं और अक्सर साथ खेलते भी थें ,घटना जब शुरू हुई थी दोनों किशोरावस्था के थें। लड़की की फुआ को लड़के का चाचा रस्ते से उठा लिया था,दोस्तों के साथ कुकर्म करके मरणावस्था में घर के बाहर फेंक भाग गया था ,फुआ ठाकुर का नाम बता मर गई थी। लड़की का दादा उस ठाकुर को गाँव के बाहर पकड़ जान से मार अपनी बेटी की बेइज्जती का बदला ले लिया। ठाकुर,उसपे जमींदार ,एक दलित की इतनी हिम्मत कैसे सह जाता ,बस वही से जंग और दांव-पेंच शुरू हो गई ,ठाकुरलोग इस लड़की की माँ-फुआ को खेत में कम करते हुए दबोचे ,कुकर्म के बाद बड़ी बेदर्दी से उन दोनों को वहीँ मार डाला ,ये लड़की भी उनदोनो के साथ खेत गई थी ,इस लड़के को वहां देखकर बातें करने लगी थी ,खेलने  लगी थी ,दोनों ही उस जघन्य अपराध के मूक गवाह बने ,लड़की दुःख और डर से पागल के समान हो गई थी ,शांत हो गई थी। लड़का सभी का विरोध करके लड़की के साथ रहा ,उसीसमय से वो लड़की को सबकुछ करते रहा,अकेला लड़का है माँ-पापा का,पैसा की कमी नहीं तो वे लोग कुछ बोलते नहीं। लड़की ठीक हुई ,पढ़ते रही ,लड़का हर वक़्त इसके साथ है और सहायता करते रहा। धीरे-धीरे दोनों का परिवार विरोध के बाद शांत हो गया है। लड़का खुलके इसे सहायता करता है ,प्यार करता है सोचके लड़की भी ग्रहण करती है और इस् पे पूरी तरह आश्रित  है " बाबू सब सुना जा चुके थें। 
                क्या है ये?सच्चाई तो यही लग रहा कि ये प्यार नहीं ,बस दया का बदला रूप है ,एक सवर्ण का दलित के प्रति। आदिकाल से यही तो होते आया है ,एक तो पुरुष उसपे सवर्ण ,,जमींदार का बेटा ,सामने एक बेबस दलित लड़की ,दया की पात्र ,बस उद्धार करने चले। कहाँ कोई प्रेम कहानी बन प् रही है। लड़के के माँ-बाप भी शायद इसलिए चुप हैं की जहाँ,जिसके साथ जो करना है करे ,शादी बस अपने जात में बराबर के परिवार में करनी है। लड़की के पापा भी छोड़ दियें हैं की एसा लड़का उन्हें कहाँ मिलनेवाला ,जो इतना प्यार करता है।क्या ये प्यार है जहाँ रूप-रंग,जात -पात,भेद-भाव,संस्कार-शुचिता सब तिरोहित हो गए हैं।   
                 लड़की इसे अपनी नियति मान सच्चाई से अवगत हो जाये तो अच्छा ,पर इसे अपना किस्मत मान इतराने लगे तो क्या होगा?लड़का किसी दबाबवश इसे छोड़ दिया ,माँ-बाप दूसरी लड़की से शादी करवा दियें तो क्या ये लड़की इसके प्यार को भूल जायेगी ,इसके दया को समझ गर्त में डूब जायेगी ,या बाहर की औरत का दर्ज़ा कुबूल करेगी ,क्योंकि लड़का शादी अभी किया नहीं और शादी आसानी से कोई होने भी न देगा। निर्णय देना आपके हाथों  में है ,कहानी तो हमने परोस ही दिया है।  

Friday 27 September 2013

मार अपनों की

   अलस्सुबह जग के बालकोनी पे निकली तो देखी अपार्टमेंट के लॉन में भीड़ लगी है ,औरत,मर्द,बच्चें ,सभी शामिल हैं ,शोरगुल हो रहा है,दिन का गार्ड भी खड़ा है ,आश्चर्यमिश्रित उत्सुकता सी मै  नीचे भागी । 
                     इतनी गर्मी में स्वेटर-शॉल पहने आकांक्षा बीच में बैठी है और हाथ हिला-हिला के कुछ बोले जा रही है,सभी फ्लैटवाले लोग उसे सुन रहें,कुछ मुंह छुपा हंस रहें हैं,बड़े आश्चर्य की बात की उस भीड़ में उसका पति या ससुराल का कोई सदस्य नहीं था ,मै  भीड़ का हिस्सा बनना नहीं चाही ,लौटते हुए रास्ते में मिसेजसिन्हा मिली ,बड़े हीं दुःख से बोलीं "देखीं जी इस बेचारी को इसके ससुरालवाले पागल करके ही छोड़ा "अच्छा लेकिन आकांक्षा तो मायके थी न ,कब आई ?"अरे क्या मायका ,वेलोग भी तो इसे भगवान भरोसें हीं छोड़ दिए हैं,६ -७ दिनों पहले आई है ,बच्चा पहले ही इससे छीन कर हटा दिया गया था,जानबुझकर इसे तनाव में रखा जाता है ,डिप्रेशन में थी ,परसों से ज्यादा संतुलन बिगड़ आया है "पलटकर देखी हाथ भांज-भांज कर अंग्रेजी में कुछ बोले जा रही आकांक्षा ,नहीं देखा गया तो हट गई वहाँ से,सीढ़ी पे नीलममेहरा  मिलीं "देखिये क्या मिला मिसेज राठी को इस बेचारी की दुनिया उजाड़ के?"एक नई वाकया मेरे सामने पसरी थी पर रुक के सुनने की इच्छा न हुई ,हताश आ सोफा पे पसर गई ,आँख आँसू से भर किरची सी चुभने लगी । ओह सुन्दरता की महत्वकांक्षा  इतनी ज्यादा होती है क्या ,की मिसेज राठी लोकलाज भूल आकांक्षा के पति को अपने में समेट इस लड़की को इतनी एकाकी कर गई जो आज ईस हालात में है ,आखिर वो एक औरत ही तो है ,उम्रदराज औरत ?
                      औरत की बेबसी पे व्यग्र हो ही रही थी की कम करनेवाली लड़की अंजू आ गई ,उसके लिए हर घटना नमक-मिर्च लगी एक मनोरंजक समाचार होती है ,बस वो आरम्भ हो गई "जानती हैं आंटी आकांक्षा दीदी पागल हो गई है ,उसका पति राठी आंटी से फंसा है,आकांक्षा दीदी अपने आँखों देख पकड़ ली,उसका हस्बैंड बोल की सब सह के रहना है तो रहो नहीं तो बच्चा लेके तुम्हे मायके भगा दूँगा ,दीदी ने पुलिस -महिला आयोग की धमकी दी तो उनलोगों ने क्या हल किया आकांक्षा दीदी का,वो बोलते जा रही थी ,मै  कुछ भी न सुन पा  रही थी ,सोचे जा रही थी की बेचारी आकांक्षा कितना उत्पीड़न सही होगी ,कितने तनाव में रही होगी ,कितना तड़पि होगी अपने बच्चे से अलग होके ,इस अंजाम तक पहुँचने में कितने दिन-रात जहालत के बिताये होंगे उसने ।    ३-४ साल ही तो गुजरे हैं ,आकांक्षा शादी हो के आई थी ,स्मार्ट-सुघड़,बहुत सुन्दर नहीं पर बेहद प्यारी और अच्छी । उसका हमेशा खिलखिल के हँसना ,धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलना सभी को प्रभावित करता था ,अपने तहजीब-तरीके से वो सबकी चहेती हो गई थी ,सबको मदद करना,आत्मविश्वास से लबरेज रहना,सभी मुग्ध रहते थे ,पति ठेकेदारी करता था और इतना सुन्दर था की देखते आँखे न थकती थी ,इतनी प्यारी और अपनी सी जोड़ी लगती थी दोनों की । दिन यूँही गुजरते जा रहे थें ,आकांक्षा एक बेटे की माँ बनी,फिर उडी-उडी ख़बरें आने लगी की आकांक्षा के पति का बगल के फ्लैट की मिसेज राठी के साथ अनैतिक संबंध हो गए हैं ,दोनों पति-पत्नी के बीच झंझट चल रहा है । आश्चर्य हुआ की इतनी सुघड़-सलीकेदार बीबी के होते हुए वो फिसला कैसे?उसी समय मै बेटा  के पास हैदराबाद चली गई थी ,आकांक्षा अपने मम्मी-पापा के यहाँ  गई थी । 
                     मर्द अपने विरुद्ध जाने पे ऐसे ही सजा का प्रावधान करते हैं… मौत से बदतर जिन्दगी ,हमेशा  तनाव में रखना,कमजोर नस को दाबे रखना  या काट डालना ,औरत किसी के सहारे उबड़ पाई  तो ठीक नहीं तो ?/ओह भगवान क्यूँ आकांक्षा को इतना टैलेंट दिये ,मूर्ख रहती तो कुछ न समझती ,सुखी रहती तो ।   मर्द अकेला कहाँ दोषी है ,उसके साथ एक औरत भी तो रहती है,घर या बाहर  की ,औरत के विरुद्ध एक औरत ही तो खड़ी रहती है। वासना का ज्वार  उतरने पे ही सही मिसेज राठी रास्ते  से हट सकती थी ,आकांक्षा की सास बेटे को समझा सकती थी । आत्मसम्मान या अधिकार के साथ जीना क्या नारी के किस्मत में नहीं?इस आधुनिक समाज में आकांक्षा जैसा मामला सभी के सामने है,आकांक्षा का अंत … आकर्मक नहीं है तो घर का काम  करेगी नहीं तो पागल का ठप्पा तो लग ही गया ,बीच में उसे अहसास दिलवाने शायद मेंटल हॉस्पिटल भी भेजा जाय । 
                   सच पुछिये तो ये कहानी नहीं है ,मै प्रत्यक्ष गवाह हूँ ,इसे कहानी के ताने-बाने में बुन भी न पाई हूँ । ऐसी घटनाओं को हम औरतें या तो अपनी नियति मान या दूसरी औरतों पे दोष गढ़ के शान्त हो जाती हैं । जुझने का जज्बा तो बचपन में ही छीन लिया जाता है ,कायरता को शर्म का नाम दे गहना बना पहना दिया जाता है । 

Tuesday 10 September 2013

स्त्री क्या है

  भगवान की सृष्टि की एक़ अदभुत,
  उत्कृष्ट,प्यारी इंद्रधनुषी संरचना,
  भगवान ने फुर्सत में अपने हाथों रचा,
  कोमल शरीर ,दया से लबालब ह्रदय,
  उसके सर विधाता ने पहना दिया,
  एक़ अदृश्य ताज,
  उसे ओढ़ाया सहनशीलता,करुणा,
  सजाया रंगबिरंगी वस्त्रों से,
  पर उसे किस्मत देते समय,
  धोखा खा गये भगवान,
  उसे छाँव-सहारा दे दिया,
  पुरुष के अत्याचारों का,
  विविध रंगों में,अनेक ढंगों से,
  घर-दुनिया -खुद में ,एक़ स्त्री,
  सामंजस्य बैठाती भागती रहती है,
  हर कदम जिन्दगी में सभी को,
  खुश रखने का प्रयास करती हुई,
  अपनी जिन्दगी अपनी ही नहीं रह जाती,
  उसका भविष्य उससे लुकता-छिपता है,
  भयावह,स्याह,उलझा लगता है,
  उसके अपने अस्तित्व के विरुद्ध पुरुष है,
  जो उसका अपना अंश है ,दिल के धागों से गुंथे हैं,
  पिता-भाई-पति-पुत्र है--------
  उनके कुकर्म को भी वो नज़रंदाज़ करेगी,
  उनकी पीठ थपथपायेगी,
  उन्हें उत्साहित,ताकतवर करेगी,
  अनजाने में ही सही,
  अपने विरुद्ध अपनों को खड़ा करेगी। .  

Saturday 10 August 2013

बस एक बार

किशोर होते बच्चे,जवान हो चुके बच्चे सभी में आत्महत्या की प्रवृति काफी बढ़ गई है। रोज़ के हिसाब  से बच्चे छोटी-छोटी बात पे अपने जीवन का अंत कर रहे हैं ,बड़े शिक्षा-संस्थान,बड़े शहर,छोटे जगह ,कहीं भी अछूता नहीं है। इतने युवा हैं देश में,इतना हो-हल्ला है पर सब उथला है। निर्जीव को सजाने और लोगों को तन्हा करनेवाली सोच अपना रहे हैं हम।मनीप्लांट ऐसी लचीली सोच है की कहीं भी उग जाओ पर बरगदवाली  छाँव कहाँ मयस्सर होती है।सच तो है जुड़ाव तो तभी मजबूत होगा जब जड़ें गहरी हो,आज के जैसे हालात हैं--युवाओं में उमंग है तो तनाव और आक्रोश भी है ,कुछ कर गुजरने का जज्बा है तो अपने एकाकीपन का भान भी है,जो तन्हाई-तनाव-तकलीफ से न जूझ पातें और कायरतापूर्ण कदम उठा लेते हैं उन्ही पे लिखी ये चंद पंक्तियाँ हैं---मै २ घटनायों को बहुत समीप से देखि हूँ--मन व्यथित हो जाता है।ये जिन्दगी क्या इतनी बेअर्थ है की निराश होने पे ही सही इसका अंत कर लिया जाय ,प्रेम में असफल होने या मम्मी-पापा के विरोध पर भी ये घृणित कार्य होते हैं,किस जूनून,किस जज्बे से ये उनका पालन-पोषण करते हैं वे क्यूँ भूल जाते ?
               अंधेरों में कंदील जला के तो सोचो ,
               जंगल में जुगनुओं की तरह टिमटिमा के तो देखो,
               पूरी जिन्दगी अपनी जी के तो देखो,
               बस एक बार ----एक बार तो सोचो,
               इस पार की दुनिया में सब कुछ है,
               रौशनी कम ही सही ,पर नज़र जाने तक तो है,
               हिम्मत जुटा ,कदम बढ़ा कर के तो देखो,
               उसपार  न जाने क्या होगा ??
               ना देखी दुनिया की क्यूँ सोचें,
               मधुर घंटी बजाती ,सुकून देती शान्ति  की दुनिया,
               ये कोरी भ्रम की सुनी हुई बातें हैं,
               उम्मीद भरी ,उजास से ख़िली हुई,
               एक पूरी दुनिया तुम्हारे सामने पसरी है,
               अँधेरी राहों में दिल का दीपक जला के तो देखो,
               वीरान पड़े दिल में प्यार बसा के तो देखो,
               बस एक बार----एक बार तो सोचों,
               समाज मुंह जोह रहा ,परिवार उम्मीदें संजो रहा,
               माँ की ममता,पापा का दुलार ,बहन का स्नेह ,
               क्यूँ भूल रहे तुम,क्यूँ मुख मोड़ रहे तुम,
               किसी की जीवन भर की थाती हो तुम,
               किन्हीं के बुढ़ापे की लाठी हो तुम ,
               कहाँ अकेले हो तुम ?/?
               अपने एकाकीपन को क्यूँ जबरन ओढ़ रखे हो तुम,
                जो राह बंद हो रही उसके आगे दूसरी खुल रही ,
                उदास -स्याह सोचों से उबर  कर के तो देखो ,
                तुम्हारे हिस्से का आसमान बाहें फैलाये सामने है,
                अपनी उन्मुक्त ,विहंग उडान उड़ के तो देखो,
                बस एक बार-------एक बार तो सोचों।
               

Friday 19 July 2013

कहानी--रूबरू समाज

     भगवान ने दो जाति  बनाया ...एक शारीरिक रूप से सबल और दुसरे को निर्बल ...तो समाज -परिवार का ढांचा और परिवेश भी उसके अनुरूप  ही बना था .देश की गुलामी के लम्बे दौर मे पुरुष स्त्रियों को संरक्षण  देते-देते अपनी शक्ति को हथियार बना लिए फिर तो वे शोषक और शासक बन बैठें .यानि कि एक पुरुष से संरक्षण देना दूसरे पुरुष का काम हो चला ,वो ब्रह्मा-विष्णु -महेश की भूमिका का निर्वाह करने लगा .स्त्रियाँ घर की इज्जत बन परदे के पीछे छुप  गई ..
                                         स्त्रियाँ किसी भी तबके की हों वो शोषित है ,बस अंतर इतना है की मध्यम वर्ग की औरतें इज्जत के आवरण में अपने को समोय रहती है जबकि निचले तबके की मेहनतकश औरतें इज्जत के अलग अर्थ को अमल में लाती  हैं ....ये इतनी सबल होती हैं कि सलाम करने को जी चाहता है .कितनी सहजता से बचपनसे बुढ़ापा तक का सफ़र यूँ गुजर देती हैं मानो किसी के सहारे की आरजू ही नहीं .पति के निकम्मेपन,शराबीपन और अत्याचार को ये किस्मत का नाम देकर चिंतामुक्त हो जाया करते हैं ,औरत होने का दर्द सहती हैं,मार खाती हैं पर घायल सिर्फ शारीर होता है मन नहीं ......   पूरे शरीर पे चोट का निशान,माथा फटा,खून बहता हुआ,तीन छोटे बच्चों को लिए गेट पर पिटती नेहा को देख मै विह्वल हो गई ,क्या हुआ "मेमसाहेब कुछ पैसा दे दीजिये मै खाली हाथ घर छोड़ आए हूँ,रात सामने के गराज में सोई हूँ,"ठंड अभी भी कायम है तो कैसे ये रही होगी .उसके हौसले को मैं देखने लगी और उसकी सहारा बन उसके साथ खड़ी हो गई ."जानती हैं मेमसाहेब माँ-बाप छोटी उम्र में शादी कर दिया, सास बहुत ख़राब बर्ताव मेरे साथ करती थी,तीनो बच्चे जल्दी ही हो गए ...उसके बाद पति को किसी तरह फुसलाकर यहाँ लेके आई,ये अच्छा कमाता था पर इसके माँ-बाप यहाँ आके रहने लगे ,सास के बहकावे  में आ मेरा मरद दारू पीने लगा,मै खूब लडती थी,चिल्लाती थी ,मुझे मारता था …आज चिल्लाके लड़ रही थी तो पीछे से माथा पे लाठी मारा " उसे हर तरह का सहायता दे प्यार से समझाई कि क्यों अपना घर छोडोगी ,जीत  तो तब होगी जब उन तीनो को घर से भगाओ ,इतने घर काम कर उन सबों को खिलाती थी न तो अपना और बच्चों का पेट कैसे न भर पाओगी ? .....फिर उसे थाना भेज शिकायत दर्ज करवा दी,,पति जेल गया फिर जमानत पे छूट  अपने माँ-बाप को लेकर अलग रह रहा है .इसे साथ रखने को लेकर कभी पंचायत कर रहा,कभी झगडा . नहीं जानती आगे क्या होगा पर परिवर्तन की हवा तो चल ही पड़ी है ........    हर तरफ कहानियां बिखरी पड़ी है, हर एक औरत की एक कहानी है .मेरी-आपकी-सबकी ..औरत एक जाति विशेष है सिर्फ ......जिसने दिमाग का प्रदर्शन किया  उसे पग-पग पर लक्षण लगाये जाते हैं .........इन आपबीतियों को,भोगों को कहानियों में ढालने  की कितनो को हिम्मत है और गर हिम्मत है तो कितने लिखने की कला के ज्ञाता हैं............??????
आज इस कहानी के आगे की कड़ी भी जुड़ गई है ,उसका पति जेल गया ,उसके सास-ससुर जमीन के कागज सौंप जमानत करवा आये ,फिर से उसका पति मजबूत बन उससे मारपीट करने लगा ,मार खाती औरत ..पर न सहमी न हारी .मुझे गर्व हुआ उसपे ,मै उसे हमेशा अहसास करवाती रही की तुम खुद कमाती हो ,बच्चें  पालती हो तो क्यों मार खाती हो ?उसे बताओ की तुम उसके बिना भी खड़ी हो ,बड़ी मासूमियत से बोली .."मेमसाहेब देह्साथ की इच्छा होती है न ,फिर मर्द का साया भी जरुरी है ,सच कहूँ तो इस हकीकत को आत्मसात करने में मै आसमां से धरातल पर पहुँच गई ,हम मध्यवर्गीय क्लास के लोग कितनी आसानी से हर इच्छा को दमित कर लेते हैं ,खैर मै उसे आर कदम पर साथ देते गई और राह बताते गई ..
                          एकदिन फिर हाथ फुला हुआ ,कान के पास कटा हुआ लेके पहुंची ,इसबार उसे महिला थाना भेजी ,२-४ दिनों तक तो उसका पति भागा ,फिर पकडाया ,फिर जमानत ..लेकिन अब पति और सास-ससुर डरे हैं की ये दब नहीं रही ,पंचायत भी बैठा ....एक पुरुष के सामानांतर दुसरे पुरुष को ही लाना होगा ताकि उसके दंभ को चोट लगे ..हम स्त्री बच्चों को अपनी मिलकियत समझ कमजोर पड़  जाते हैं की वो छीन  न ले ,कोई चोट ना पहुचायें ..
                          गौर कीजिये तो ये मेरी-आपकी ,सबकी कहानी है ..इस भावनात्मक कमजोरी को ही पुरुष अपनी  शक्ति बना लेता है .लड़ाई तो अभी सदिओ तक चलेगी तभी कुछ परिवर्तन संभव है .कुछ हुआ,कुछ अभी बाकि ..............
                           मेरी ये कहानी आज पूरी हुई ..वैसे सच पूछिए तो ये न कहानी है न ही मै इसे गुन पाई हूँ ..मेहनतकश लोग जो इतने आभाव में रहते हैं फिर भी इतनी सुघड़ता से जिन्दगी का ताना -बाना बुनते हैं की इसपे अनवरत कलम चलाई जा सकती है ,पर पुरुष तो पुरुष ही होता है ..दंभ -बल से भरपूर शासकवर्ग ..............            
                           

Monday 15 July 2013

चुप की जुबाँ

शब्द मेरे वजूद हैं ,
मै शब्दों से खेलती हूँ ,
मै इनके तिलिस्म को सुलझाती हूँ ,
कभी लफ्ज़ बगैर फलसफा बन जाता है ,
कभी शब्द बिन जिन्दगी  गुमशुदा हो जाती है ,
जिन्दगी कोई ग़ज़ल नहीं ,न ही कोई मुशायरा ,
हालात से जूझते हुए ,
मेरे अन्दर का खौफ ,
मुझे मूक कर जाता है ,
शब्द बेअसर हो जाते हैं ,
मेरे"शेर 'जूझते पस्त हो जाते हैं ,
'ग़ज़ल "तकलीफ से छटपटाते नज़र आती है ,
मै शर्मिंदा हूँ ,
शब्दों की ताकत से भरोसा उठने लगता है ,
'ग़ज़ल ','शेर 'तो मेरे अपने हैं ,
इन्हें कसके थामना होगा ,
मेरा मौन जब मुखर होगा ............
बहती नदी रुक जायेगी ,
लम्हें बदहवास भागेंगे ,
वक़्त अवाक्-निढाल हो जायेगा ,
दुनिया शायद तब समझेगी ,
असीम होती है .....चुप की जुबाँ की सीमा ...........

Wednesday 3 July 2013

लहू तो लहू है l

लहू तो लहू है ,
तेरी-मेरी सब की ,
लहू पुकारती है ,सभी रिश्तों से परे ,
गर्म लहू-सर्द लहू ,
कुछ कभी सर्द नहीं होती ,
कुछ खौलती ही नहीं ,
सूर्य की किरणें रात  का सबूत खोजती है ,
शाम रात परोसती है ,
ख्वाब तो आते ही रहते हैं ,
ताबीर नहीं होती ,आँखे कतरा सी जाती है ,
कौन-कैसे दरयाफ्त करेगा ,
अपने होने का सबूत ,
वजूद सुगबुगाती है,
नस्ल के नये होने का दस्तूर ,
मोहब्बत ज़माने के आगे बिछी है ,
गर्द में समोई ,जलील होती ,
क्या मंजिले पायेगी ?
उसकी जूनून बनी है आवारगी ,
जो लिपटी है चिथरों में ,
धड़कने बदस्तूर है ,
तारीखें दर्ज है ,
धरती है .....आसमां है ,
इन्सान है---जानवर है ,
हवा बहती ही रहती है ......
समन्दर से समन्दर तक ..............

Saturday 29 June 2013

Bhasha Dard ki

                           समय तप रहा ,उमस बढ़ रही ,मौसम उदास है ,
                           आवेग व्यथित है,हादसे जुबां हो गये  हैं ..........
कैसा दौड़ चल रहा जिन्दगी में जहाँ जुबां बंद हो गए हैं,संवेदनाएं गूंगी हो चुकी है,हादसों की श्रंखलाबद्ध कड़ियाँ गूंथ गई है ,सच पूछिए तो मन घबड़ा  गया है--दुःख देखते-सुनते .इतने दर्द को कहा समेटा जाय ,बुद्धिजीवी हो या आम नागरिक मूक हो चुके हैं,अभिव्यक्ति पाषण  हो चुके हैं ,दर्द की भाषाएँ समाज-देश के धरातल पर एक हो चुके हैं ..जब अभिव्यक्ति आरम्भ होगा ,भावनायों का जल सा बिछ जायेगा ..
                           उतराखंड(केदारनाथ)में इतनी प्रलयकारी प्रकृति प्रकोप हुआ,इतना विन्ध्वस हुआ की इसे विनाश का चरम कहा जा सकता है ,शिव का धाम धराशायी हो चूका है,हजारों लोग काल -कलवित हो चुके हैं ,ये अब पुरानी  घटना है,देशव्यापी खबर है इसलिए इसपर बोलना या डाटा देना ना करुँगी ,पर किसी घटना के बाद की जो वस्तुस्थिति प्रकट होती है या उसपे जो प्रतिक्रिया व्यवहार की-विचार की प्रगट होती है ,सोचनीय है,शर्मसार करती है हमें ..केदारनाथ की स्थिति सुनने या देखने पे मुंह जिगर को आता है ,कैसे आपदा से जूझकर ,कितने दर-कष्ट से लोगों ने मृत्यु को गले लगाया होगा??जो बच गये हैं वे भी तो मृत्युयंत्रणा ही भुगत रहे हैं .न सर छुपाने को छत न पेट भरने को अनाज ,नाही सुरक्षा के कोई साधन ..फिर कैसे कोई सौदा कर रहा जिन्दगी-मौत का,कैसे कोई उन्हें लूट सकता है ,कैसे कोई दरिंदगी कर सकता है ,लेकिन सबकुछ इसी धरती पे होता है और इन्हीं इंसानों के हाथ होता है ,दुःख को देखकर भी जिन्हें अपना स्वार्थ भुनाने का याद  रहे क्या कहिये येसे लोगों को ..लेकिन ये समाज इन सबों के बीच भी जमा रहता है ,जिन्दगी न ख़त्म होती है न इसके मेले ख़त्म होते हैं न ही इसकी गति पे कोई असर होता है .......ये ही सच है ..
                            केदारनाथ की घटना पे राजनीति भी खूब हो रही है .दिल से कौन सोचता है ,बस इसी चक्कर में सभी पड़े हैं की ज्यादा नाम और फायदा कौन भुना सकता है ...ओह क्या त्रासदी है की दर्द की भाषा गूंगी और निष्क्रिय  हो चुकी है. मीडिया की मनमानी वैसे ही चलती है ,पर ये भी सही है कि वैसी जगह भी जाके येलोग ...थोड़े-बहुत अतिश्योक्ति को गर छोड़ दिया जाये तो ...बहुतेरे सच्चाई से अवगत ये ही करवाते हैं ,बहुत जगह चिढ़ होती है तो बहुत जगह साधुबाद देने को दिल करता है ....
                             जिन्दगी के साथ मौत की भी सौदेबादी  हो रही ,उनतक प्रयाप्त सहायता नहीं पहुँच पा रही ,जो जिन्दा हैं वो जिन्दगी बचाने  के लिये मरणायंत्र पीड़ा से ही जूझ रहे हैं ..कहीं येलोग जिन्दगी की लड़ाई हार न जाये ,जिजीविषा शान्त न हो जाये ,आशा का दामन झिटक ना जाये .....उम्मीद की लौ हर हालत में जलती रहनी चाहिए .....

Thursday 27 June 2013

फासले प्यार के

                                               
                                             
तुम बोलते याद करते हो मुझे ,याद में उतर प्यार करते हो मुझे ,
तुम इसरार करते ------क्या तुम मुझसे प्यार करती ???
क्यूँ नहीं इकरार करती ,प्यार-प्यार सिर्फ प्यार बोलो ,
एकबार नहीं बारम्बार बोलो ..........
किसतरह मै  क्या बोलूं ,कैसे अभिसार करूँ ,
कैसे स्वीकार करूँ ,क्या दूँ अभिव्यक्ति अपनी ......
मेरी हर पहर में बसा है तू ,
हर डगर पे खड़ा है तू ,
हर लम्हें में छुपा है तू ,
हर कतरें,हर शै में बहा है तू ,
हर क़दमों के साथ गुंथा है तू ,
हर आंसू के बूंद के साथ टपका है तू ,
दिल की आवाज बन गया है तू ,
इसके आगे क्या कहूँ .......
हैं जड़े धरती में तेरी ,तलाशती आँखे नये आयाम ,
हदें-उड़ान पूरी कर ,सभी मंजिलों से गुजर जा तू ,
मै अवाक् तकती-नापती ,
अपने-तुम्हारे बीच  के फासलें ,
कैसे कर ये फासलें मिटायें,
किसतरह प्यार की लौ जलाएं ...........

Friday 21 June 2013

एक बच्चा जिस रास्ते इस दुनिया में पदापर्ण करता है,जिनसे अमृत -घूंट पीता है,मर्द बनते उसे पाने की आदम चाहत प्राकृतिक होती है ---पर क्या उसके लिए पैशाचिक -वृति ,अमानवीय -कृत्य जायज़ है आज की युवा-पीढ़ी क्या संस्कार ले प् रही है ,हमारे देश के ये होनहार ..कुछ पलों के सुख के लिए जघन्य अपराध भी कर सकते हैं?? दण्ड ऐसा प्रावधान हो की अगली बार करने के पहले कोई डरे और एक बार सोचे .......
ये जो देश व्यापी आवाज उठ रही है ......दोस्तों इसबार इसे दबने न दो--------और नहीं अब और नहीं------------
प्रोफाइल फोटो बदल एक मूक -शांत-विरोध ,संदेश --आशा के साथ--------फिर सुबह होगी ,सुहानी होगी .....हम बदलेंगे-युग बदलेगा -देश बदलेगा .........!
ख्वाबों की दुनिया कितनी सतरंगी होती है ,आँखों के कैनवास पर इन्द्रधनुषी रंग कभी धुंधले ही नहीं होते---वक़्त कभी थमता नहीं गुजरते जाता है ,कभी कुछ ऐसा होता है जो सब याद दिला देता है--एक उपस्थिति ,मह्सुसना ..ख्वाबों की फ़ितरत होती है जो किसी अनचीन्हे को आपके अनजाने में आपके समीप लाती है ,अपना बनाती है और कब वो सच्चाई में तब्दील होते जाती है,लाख सर पटकने पर भी पता नहीं चलता---सच्चाई यादों में ठलती है और विगत यादें अचेतन पर कब्ज़ा करते जाती है,ये कैसी साजिश है जो हकीकत लगती है,बेकरारी बढाती है ...वो अनजान ख्वाबों की तहरीर सशरीर रूबरू होती है पर कुछ अनचाहें लम्हें दहला कर खामोश कर जातें हैं ...........
रात के ख्वाब सुनाएँ किसको ,रात के ख्वाब सुहाने थें ,,
धुंधले-धुंधलें चेहरे थें ....पर जाने-पहचाने थें ....................
बंधन ही जीवन की आदर्श मुक्ति है .सागर तो कुलों में तुनुक-तुनुक बंधन में बंधकर भी असीम है .चाँद का आकर्षण ही तो लहरों का कारण है---पवन उन्मुक्त,चंचल होते हुए भी सुरभि का मह-मह ,मृदु -मृदु भार ढोता ही है न -----माघ का चाँद ..चांदी बिखरेगा,,समुंदर को उछालेगा ,तरियों को,सागर-सुता को लहर-लहर पर ,,छहर-छहर कर नाचवायेगा ,,,देगा तारों की किरणों को कांपने का कारण ---------सतदल कमल को ,ऋतुफल सफल करने जलपरियाँ आयेगी ..चाँद भी फाल्गुन कृष्ण-पक्ष प्रथमा को चौदहवी सा बन्ने की कोशिश करेगा --------
बिछड़ कर बादलों की भीड़ में गम हो गया था जो ,
वो पीला चाँद आँखों में समंदर ले के आया है -----------------------

Wednesday 19 June 2013

 एक सुबह ......न अंगराई लेती हुई न ही नींद से बोझिल बरन धुंध और कोहरे में लिपटी ,अलसाई और स्तब्ध ,कोहरे वर्तमान के प्रतीक  हैं जिनके पलों को प्रकृति यूँ अविचल की है मानो  ये कभी जागेंगे ही नहीं ..इतनी ख़ामोशी जिसे आजन की आवाज या घंटे की गूंज भी भेद नहीं पा रही है .धुंध आपके अतीत की तरह है कभी स्पष्ट नज़र आता है कभी अदृशय ,दोनों का विस्तार आपार  है जन आरपार है. धुंध और कोहरे में लिपटी ईश् की हर खुबसूरत रचनाएँ शायद इसलिए भी मूक हैं क्योंकि वे गवाह बनना चाहती है सारे कायनात के साजिश का जो वो कोहरे की चादर तले धरती-आसमान के मिलन हेतु सारा तामझाम फैलाई है ,कोहरा और धुंध एक अदृशय बंधन में गूँथ रहा है ,नव-धरा को .....अब जो किये हो दाता अक्सर हीं कीजो ,कोहरे की चादर यूँही धनीभूत कीजो ......धुंध-दर-धुंध गुजरते हुए हर चेहरा बदलने लगा है ,
                             कोहरे की ठण्ड तनमन ,हर अहसास ज़माने लगा है ,
                             धुंध के इस दौर से लड़ता हुआ ये वक़्त ये वक़्त है,
                              जुगनुओं की रौशनी लौ चलाएगी ,
                               कीमत चुकाती जिन्दगी रंग पायेगी ........

Tuesday 18 June 2013

जीवन यूँही अर्थ पाता है ,विस्तार लेता है ....जब जिन्दगी सलाह देती है ..दिल की गिरह खोल दो .भोर ऐसी दिखती है मानो  पहले कभी ना  हो ..उजास ही उजास .....अपने से परे अनजान  रास्तों पर किसी की पुकार दिल के कोनों में गूंजती है और मन का आँगन सुवासित हो उठता है ,जिन्दगी क्या है ,मन का दर्पण है .आशा के कण-कण से सींची हुई हरी-भरी बेल ..कोमल कलियों से द्वार सजाकर ,मधुर सपनो के दीप जलाकर,निज अरमानो के घर बनाकर हम हाथ में कंगना ,पैर में पैजनिया ,पोर-पोर में हया भरके ...सज-धज कर बैठ जाते हैं ,नैनो को बिछाकर सुनी पथ पर ...........दिल से चाहो तो कायनात साथ देती है ,
                                                               तुझमे अगर प्यास है तो बारिश का घर पास है………… 

Saturday 15 June 2013

 हम जानते हैं कि जरा सा में कितनी ताकत होती है .थोडा ज्यादा ,किसी और से थोडा सा अधिक. जरा सा ज्यादा ..बड़ा अंतर पैदा करने की ताकत रखता है. एक मुस्कान ,एक किरण ,एक मौका ,एक माफ़ी ,एक समझ ,एक छन ,एक मीठा बोल…कुछ ही तो धुप के टुकड़े ज्यादा मांगता है मन का आँगन खिल जाने के लिए  और ज्यादा जगमगाने के लिए ....कभी थोड़ी सी नींद ,कभी थोड़ी सी मिठास,कभी थोडा सा उजास ,हम सबमें थोडा ज्यादा पाने की इच्छा सदा बनी रहती है. कुछ अच्छा मिले तो ज्यादा मिले ,जितना नसीब से मिले वो उम्मीद का ..उससे ज्यादा मिलता है,तब ही होता है इत्मीनान ....
                 जिन्दगी नये-नये रास्तों पर मुडती रहती है ,लेकिन जो एक कदम ज्यादा चलते हैं ,वो उन मोड़ो से झांक लेते है जो आगे मुडती है ..बादल कभी सफ़ेद होते हैं,कभी पानी की बूंदों से भरकर श्याम हो जाते हैं ..आसमान को ही नहीं सूरज को भी ढांप लेते हैं,इनके बीच  से भी वे लोग रौशनी छांट  लेते हैं जो एक नज़र ज्यादा देखने में दिलचस्पी रखते हैं ........

Monday 10 June 2013

जिन्दगी कब क्या रंग दिखलाती है,कब रूख पलटती है,कब चमत्कार..............सच मे अवाक् कर जाती है.कब आपसे उम्र मे छोटा ,बड़ा हो जाता है,कब बड़ा छोटा बन आपके पनाह मे आ जाता है,कब कौन किसपे प्यार लुटायेगा,कब कौन प्यार का दावेदार हो जाता है.........जब दिल बोलता है तो दिमाग भी विरोध करना शालीनता के खिलाफ समझता है.दिल की गवाही,दिल का कारोबार सभी कायनात के साजिश के तहत आते हैं,यैसे भी टूटना,बिखरना,चूर होना,यही तो किस्मत है ख्वाब की.......................एक अरसे से शुरू खोज जारी है, जिन्दगी से खुद की पहचान अभी बाकि है..................................................
अपने अंतर की आवाज ,दिल से स्पंदित शब्द ,भावनाओं का ज्वार ,सुख-दुःख की स्याही .....बस ये ही है मेरी पहचान .कुछ न कह पाने की झिझक,हद से न निकल पाने की कुंठा ,जाने कितना कुछ अनकहा,अनसुना, अनचीन्हा रह जाता है. इन सभी को लेकर ब्लोग के संसार में दाखिल हुई हूँ ..