Saturday 29 June 2013

Bhasha Dard ki

                           समय तप रहा ,उमस बढ़ रही ,मौसम उदास है ,
                           आवेग व्यथित है,हादसे जुबां हो गये  हैं ..........
कैसा दौड़ चल रहा जिन्दगी में जहाँ जुबां बंद हो गए हैं,संवेदनाएं गूंगी हो चुकी है,हादसों की श्रंखलाबद्ध कड़ियाँ गूंथ गई है ,सच पूछिए तो मन घबड़ा  गया है--दुःख देखते-सुनते .इतने दर्द को कहा समेटा जाय ,बुद्धिजीवी हो या आम नागरिक मूक हो चुके हैं,अभिव्यक्ति पाषण  हो चुके हैं ,दर्द की भाषाएँ समाज-देश के धरातल पर एक हो चुके हैं ..जब अभिव्यक्ति आरम्भ होगा ,भावनायों का जल सा बिछ जायेगा ..
                           उतराखंड(केदारनाथ)में इतनी प्रलयकारी प्रकृति प्रकोप हुआ,इतना विन्ध्वस हुआ की इसे विनाश का चरम कहा जा सकता है ,शिव का धाम धराशायी हो चूका है,हजारों लोग काल -कलवित हो चुके हैं ,ये अब पुरानी  घटना है,देशव्यापी खबर है इसलिए इसपर बोलना या डाटा देना ना करुँगी ,पर किसी घटना के बाद की जो वस्तुस्थिति प्रकट होती है या उसपे जो प्रतिक्रिया व्यवहार की-विचार की प्रगट होती है ,सोचनीय है,शर्मसार करती है हमें ..केदारनाथ की स्थिति सुनने या देखने पे मुंह जिगर को आता है ,कैसे आपदा से जूझकर ,कितने दर-कष्ट से लोगों ने मृत्यु को गले लगाया होगा??जो बच गये हैं वे भी तो मृत्युयंत्रणा ही भुगत रहे हैं .न सर छुपाने को छत न पेट भरने को अनाज ,नाही सुरक्षा के कोई साधन ..फिर कैसे कोई सौदा कर रहा जिन्दगी-मौत का,कैसे कोई उन्हें लूट सकता है ,कैसे कोई दरिंदगी कर सकता है ,लेकिन सबकुछ इसी धरती पे होता है और इन्हीं इंसानों के हाथ होता है ,दुःख को देखकर भी जिन्हें अपना स्वार्थ भुनाने का याद  रहे क्या कहिये येसे लोगों को ..लेकिन ये समाज इन सबों के बीच भी जमा रहता है ,जिन्दगी न ख़त्म होती है न इसके मेले ख़त्म होते हैं न ही इसकी गति पे कोई असर होता है .......ये ही सच है ..
                            केदारनाथ की घटना पे राजनीति भी खूब हो रही है .दिल से कौन सोचता है ,बस इसी चक्कर में सभी पड़े हैं की ज्यादा नाम और फायदा कौन भुना सकता है ...ओह क्या त्रासदी है की दर्द की भाषा गूंगी और निष्क्रिय  हो चुकी है. मीडिया की मनमानी वैसे ही चलती है ,पर ये भी सही है कि वैसी जगह भी जाके येलोग ...थोड़े-बहुत अतिश्योक्ति को गर छोड़ दिया जाये तो ...बहुतेरे सच्चाई से अवगत ये ही करवाते हैं ,बहुत जगह चिढ़ होती है तो बहुत जगह साधुबाद देने को दिल करता है ....
                             जिन्दगी के साथ मौत की भी सौदेबादी  हो रही ,उनतक प्रयाप्त सहायता नहीं पहुँच पा रही ,जो जिन्दा हैं वो जिन्दगी बचाने  के लिये मरणायंत्र पीड़ा से ही जूझ रहे हैं ..कहीं येलोग जिन्दगी की लड़ाई हार न जाये ,जिजीविषा शान्त न हो जाये ,आशा का दामन झिटक ना जाये .....उम्मीद की लौ हर हालत में जलती रहनी चाहिए .....

Thursday 27 June 2013

फासले प्यार के

                                               
                                             
तुम बोलते याद करते हो मुझे ,याद में उतर प्यार करते हो मुझे ,
तुम इसरार करते ------क्या तुम मुझसे प्यार करती ???
क्यूँ नहीं इकरार करती ,प्यार-प्यार सिर्फ प्यार बोलो ,
एकबार नहीं बारम्बार बोलो ..........
किसतरह मै  क्या बोलूं ,कैसे अभिसार करूँ ,
कैसे स्वीकार करूँ ,क्या दूँ अभिव्यक्ति अपनी ......
मेरी हर पहर में बसा है तू ,
हर डगर पे खड़ा है तू ,
हर लम्हें में छुपा है तू ,
हर कतरें,हर शै में बहा है तू ,
हर क़दमों के साथ गुंथा है तू ,
हर आंसू के बूंद के साथ टपका है तू ,
दिल की आवाज बन गया है तू ,
इसके आगे क्या कहूँ .......
हैं जड़े धरती में तेरी ,तलाशती आँखे नये आयाम ,
हदें-उड़ान पूरी कर ,सभी मंजिलों से गुजर जा तू ,
मै अवाक् तकती-नापती ,
अपने-तुम्हारे बीच  के फासलें ,
कैसे कर ये फासलें मिटायें,
किसतरह प्यार की लौ जलाएं ...........

Friday 21 June 2013

एक बच्चा जिस रास्ते इस दुनिया में पदापर्ण करता है,जिनसे अमृत -घूंट पीता है,मर्द बनते उसे पाने की आदम चाहत प्राकृतिक होती है ---पर क्या उसके लिए पैशाचिक -वृति ,अमानवीय -कृत्य जायज़ है आज की युवा-पीढ़ी क्या संस्कार ले प् रही है ,हमारे देश के ये होनहार ..कुछ पलों के सुख के लिए जघन्य अपराध भी कर सकते हैं?? दण्ड ऐसा प्रावधान हो की अगली बार करने के पहले कोई डरे और एक बार सोचे .......
ये जो देश व्यापी आवाज उठ रही है ......दोस्तों इसबार इसे दबने न दो--------और नहीं अब और नहीं------------
प्रोफाइल फोटो बदल एक मूक -शांत-विरोध ,संदेश --आशा के साथ--------फिर सुबह होगी ,सुहानी होगी .....हम बदलेंगे-युग बदलेगा -देश बदलेगा .........!
ख्वाबों की दुनिया कितनी सतरंगी होती है ,आँखों के कैनवास पर इन्द्रधनुषी रंग कभी धुंधले ही नहीं होते---वक़्त कभी थमता नहीं गुजरते जाता है ,कभी कुछ ऐसा होता है जो सब याद दिला देता है--एक उपस्थिति ,मह्सुसना ..ख्वाबों की फ़ितरत होती है जो किसी अनचीन्हे को आपके अनजाने में आपके समीप लाती है ,अपना बनाती है और कब वो सच्चाई में तब्दील होते जाती है,लाख सर पटकने पर भी पता नहीं चलता---सच्चाई यादों में ठलती है और विगत यादें अचेतन पर कब्ज़ा करते जाती है,ये कैसी साजिश है जो हकीकत लगती है,बेकरारी बढाती है ...वो अनजान ख्वाबों की तहरीर सशरीर रूबरू होती है पर कुछ अनचाहें लम्हें दहला कर खामोश कर जातें हैं ...........
रात के ख्वाब सुनाएँ किसको ,रात के ख्वाब सुहाने थें ,,
धुंधले-धुंधलें चेहरे थें ....पर जाने-पहचाने थें ....................
बंधन ही जीवन की आदर्श मुक्ति है .सागर तो कुलों में तुनुक-तुनुक बंधन में बंधकर भी असीम है .चाँद का आकर्षण ही तो लहरों का कारण है---पवन उन्मुक्त,चंचल होते हुए भी सुरभि का मह-मह ,मृदु -मृदु भार ढोता ही है न -----माघ का चाँद ..चांदी बिखरेगा,,समुंदर को उछालेगा ,तरियों को,सागर-सुता को लहर-लहर पर ,,छहर-छहर कर नाचवायेगा ,,,देगा तारों की किरणों को कांपने का कारण ---------सतदल कमल को ,ऋतुफल सफल करने जलपरियाँ आयेगी ..चाँद भी फाल्गुन कृष्ण-पक्ष प्रथमा को चौदहवी सा बन्ने की कोशिश करेगा --------
बिछड़ कर बादलों की भीड़ में गम हो गया था जो ,
वो पीला चाँद आँखों में समंदर ले के आया है -----------------------

Wednesday 19 June 2013

 एक सुबह ......न अंगराई लेती हुई न ही नींद से बोझिल बरन धुंध और कोहरे में लिपटी ,अलसाई और स्तब्ध ,कोहरे वर्तमान के प्रतीक  हैं जिनके पलों को प्रकृति यूँ अविचल की है मानो  ये कभी जागेंगे ही नहीं ..इतनी ख़ामोशी जिसे आजन की आवाज या घंटे की गूंज भी भेद नहीं पा रही है .धुंध आपके अतीत की तरह है कभी स्पष्ट नज़र आता है कभी अदृशय ,दोनों का विस्तार आपार  है जन आरपार है. धुंध और कोहरे में लिपटी ईश् की हर खुबसूरत रचनाएँ शायद इसलिए भी मूक हैं क्योंकि वे गवाह बनना चाहती है सारे कायनात के साजिश का जो वो कोहरे की चादर तले धरती-आसमान के मिलन हेतु सारा तामझाम फैलाई है ,कोहरा और धुंध एक अदृशय बंधन में गूँथ रहा है ,नव-धरा को .....अब जो किये हो दाता अक्सर हीं कीजो ,कोहरे की चादर यूँही धनीभूत कीजो ......धुंध-दर-धुंध गुजरते हुए हर चेहरा बदलने लगा है ,
                             कोहरे की ठण्ड तनमन ,हर अहसास ज़माने लगा है ,
                             धुंध के इस दौर से लड़ता हुआ ये वक़्त ये वक़्त है,
                              जुगनुओं की रौशनी लौ चलाएगी ,
                               कीमत चुकाती जिन्दगी रंग पायेगी ........

Tuesday 18 June 2013

जीवन यूँही अर्थ पाता है ,विस्तार लेता है ....जब जिन्दगी सलाह देती है ..दिल की गिरह खोल दो .भोर ऐसी दिखती है मानो  पहले कभी ना  हो ..उजास ही उजास .....अपने से परे अनजान  रास्तों पर किसी की पुकार दिल के कोनों में गूंजती है और मन का आँगन सुवासित हो उठता है ,जिन्दगी क्या है ,मन का दर्पण है .आशा के कण-कण से सींची हुई हरी-भरी बेल ..कोमल कलियों से द्वार सजाकर ,मधुर सपनो के दीप जलाकर,निज अरमानो के घर बनाकर हम हाथ में कंगना ,पैर में पैजनिया ,पोर-पोर में हया भरके ...सज-धज कर बैठ जाते हैं ,नैनो को बिछाकर सुनी पथ पर ...........दिल से चाहो तो कायनात साथ देती है ,
                                                               तुझमे अगर प्यास है तो बारिश का घर पास है………… 

Saturday 15 June 2013

 हम जानते हैं कि जरा सा में कितनी ताकत होती है .थोडा ज्यादा ,किसी और से थोडा सा अधिक. जरा सा ज्यादा ..बड़ा अंतर पैदा करने की ताकत रखता है. एक मुस्कान ,एक किरण ,एक मौका ,एक माफ़ी ,एक समझ ,एक छन ,एक मीठा बोल…कुछ ही तो धुप के टुकड़े ज्यादा मांगता है मन का आँगन खिल जाने के लिए  और ज्यादा जगमगाने के लिए ....कभी थोड़ी सी नींद ,कभी थोड़ी सी मिठास,कभी थोडा सा उजास ,हम सबमें थोडा ज्यादा पाने की इच्छा सदा बनी रहती है. कुछ अच्छा मिले तो ज्यादा मिले ,जितना नसीब से मिले वो उम्मीद का ..उससे ज्यादा मिलता है,तब ही होता है इत्मीनान ....
                 जिन्दगी नये-नये रास्तों पर मुडती रहती है ,लेकिन जो एक कदम ज्यादा चलते हैं ,वो उन मोड़ो से झांक लेते है जो आगे मुडती है ..बादल कभी सफ़ेद होते हैं,कभी पानी की बूंदों से भरकर श्याम हो जाते हैं ..आसमान को ही नहीं सूरज को भी ढांप लेते हैं,इनके बीच  से भी वे लोग रौशनी छांट  लेते हैं जो एक नज़र ज्यादा देखने में दिलचस्पी रखते हैं ........

Monday 10 June 2013

जिन्दगी कब क्या रंग दिखलाती है,कब रूख पलटती है,कब चमत्कार..............सच मे अवाक् कर जाती है.कब आपसे उम्र मे छोटा ,बड़ा हो जाता है,कब बड़ा छोटा बन आपके पनाह मे आ जाता है,कब कौन किसपे प्यार लुटायेगा,कब कौन प्यार का दावेदार हो जाता है.........जब दिल बोलता है तो दिमाग भी विरोध करना शालीनता के खिलाफ समझता है.दिल की गवाही,दिल का कारोबार सभी कायनात के साजिश के तहत आते हैं,यैसे भी टूटना,बिखरना,चूर होना,यही तो किस्मत है ख्वाब की.......................एक अरसे से शुरू खोज जारी है, जिन्दगी से खुद की पहचान अभी बाकि है..................................................
अपने अंतर की आवाज ,दिल से स्पंदित शब्द ,भावनाओं का ज्वार ,सुख-दुःख की स्याही .....बस ये ही है मेरी पहचान .कुछ न कह पाने की झिझक,हद से न निकल पाने की कुंठा ,जाने कितना कुछ अनकहा,अनसुना, अनचीन्हा रह जाता है. इन सभी को लेकर ब्लोग के संसार में दाखिल हुई हूँ ..