भगवान की सृष्टि की एक़ अदभुत,
उत्कृष्ट,प्यारी इंद्रधनुषी संरचना,
भगवान ने फुर्सत में अपने हाथों रचा,
कोमल शरीर ,दया से लबालब ह्रदय,
उसके सर विधाता ने पहना दिया,
एक़ अदृश्य ताज,
उसे ओढ़ाया सहनशीलता,करुणा,
सजाया रंगबिरंगी वस्त्रों से,
पर उसे किस्मत देते समय,
धोखा खा गये भगवान,
उसे छाँव-सहारा दे दिया,
पुरुष के अत्याचारों का,
विविध रंगों में,अनेक ढंगों से,
घर-दुनिया -खुद में ,एक़ स्त्री,
सामंजस्य बैठाती भागती रहती है,
हर कदम जिन्दगी में सभी को,
खुश रखने का प्रयास करती हुई,
अपनी जिन्दगी अपनी ही नहीं रह जाती,
उसका भविष्य उससे लुकता-छिपता है,
भयावह,स्याह,उलझा लगता है,
उसके अपने अस्तित्व के विरुद्ध पुरुष है,
जो उसका अपना अंश है ,दिल के धागों से गुंथे हैं,
पिता-भाई-पति-पुत्र है--------
उनके कुकर्म को भी वो नज़रंदाज़ करेगी,
उनकी पीठ थपथपायेगी,
उन्हें उत्साहित,ताकतवर करेगी,
अनजाने में ही सही,
अपने विरुद्ध अपनों को खड़ा करेगी। .
उत्कृष्ट,प्यारी इंद्रधनुषी संरचना,
भगवान ने फुर्सत में अपने हाथों रचा,
कोमल शरीर ,दया से लबालब ह्रदय,
उसके सर विधाता ने पहना दिया,
एक़ अदृश्य ताज,
उसे ओढ़ाया सहनशीलता,करुणा,
सजाया रंगबिरंगी वस्त्रों से,
पर उसे किस्मत देते समय,
धोखा खा गये भगवान,
उसे छाँव-सहारा दे दिया,
पुरुष के अत्याचारों का,
विविध रंगों में,अनेक ढंगों से,
घर-दुनिया -खुद में ,एक़ स्त्री,
सामंजस्य बैठाती भागती रहती है,
हर कदम जिन्दगी में सभी को,
खुश रखने का प्रयास करती हुई,
अपनी जिन्दगी अपनी ही नहीं रह जाती,
उसका भविष्य उससे लुकता-छिपता है,
भयावह,स्याह,उलझा लगता है,
उसके अपने अस्तित्व के विरुद्ध पुरुष है,
जो उसका अपना अंश है ,दिल के धागों से गुंथे हैं,
पिता-भाई-पति-पुत्र है--------
उनके कुकर्म को भी वो नज़रंदाज़ करेगी,
उनकी पीठ थपथपायेगी,
उन्हें उत्साहित,ताकतवर करेगी,
अनजाने में ही सही,
अपने विरुद्ध अपनों को खड़ा करेगी। .
बहुत ख़ूब लिखा है आपने , बेहद गंभीर , लेकिन एक - एक शब्द सत्य पूर्ण सत्य बल्कि कहूं सार्वभौमिक सत्य ...... स्त्री की परिभाषा कहूं स्त्री को परिभाषित किया है जो भी हो , लेकिन एक स्त्री के कलम से स्त्री को लेकर निकले शब्द बहुत ही भावुक और गहरे काफी कुछ कहते से .... काश पुरुष प्रधान समाज कुछ सोचता.... आज जब स्त्री बराबर से काम करती है.... बड़े ओहदों को पुरुषों से ज्यादा गंभीरता और ज़िम्मेदारी से संभालती है फिर भी यह स्थिति ,.... शायद अब सोचने का वक़्त आ गया है.... सोचना ही पड़ेगा.... आपकी पंक्तियों ने दिल को छू लिया ..... " घर-दुनिया -खुद में ,एक़ स्त्री,
ReplyDeleteसामंजस्य बैठाती भागती रहती है,
हर कदम जिन्दगी में सभी को,
खुश रखने का प्रयास करती हुई,
अपनी जिन्दगी अपनी ही नहीं रह जाती,
उसका भविष्य उससे लुकता-छिपता है,
भयावह,स्याह,उलझा लगता है,
उसके अपने अस्तित्व के विरुद्ध पुरुष है,
जो उसका अपना अंश है ,दिल के धागों से गुंथे हैं, " बहुत , बहुत , बहुत साधुवाद अपर्णाजी... सच कहूं तो आपको धन्यवाद देने के लिए मेरे पास शब्द भी नहीं हैं... निःशब्द हूं...बस आभार एवं बधाइयां.....
itne dhyan se padha aapne,itni sargarvit cmnt diya...dil se aabhari hun aapki....behud samridh hai aapki bhasha...
Deletegambheerta se aapne sab kuchh shabdo me gunth diya
ReplyDeletedard ka sachcha byan..
khubsurat!!
dil se shukriya...
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ReplyDeleteभगवान की सृष्टि की एक़ अदभुत,
ReplyDeleteउत्कृष्ट,प्यारी इंद्रधनुषी संरचना,
भगवान ने फुर्सत में अपने हाथों रचा। बहुत अच्छ लिखा - अभिनन्दन ।
bahu-bahut shukriya......
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ReplyDeleteभगवान की सृष्टि की एक़ अदभुत,
ReplyDeleteउत्कृष्ट,प्यारी इंद्रधनुषी संरचना,
भगवान ने फुर्सत में अपने हाथों रचा,
और
हर कदम जिन्दगी में सभी को,
खुश रखने का प्रयास करती हुई,
अपनी जिन्दगी अपनी ही नहीं रह जाती,
महिला के जीवन का सत्य लिखा है। धरती का नाम महि और उसी शब्द से बना महिला, जो सब कुछ बर्दाश्त कर्ती है और मीठा फल देती है - उर्वर कल्पना को मूर्ति रूप देने का सार्थक प्रयास जिसमे रचनाकार
सफल हुआ - अभिनन्दन ।
kitna kuch aapse sikh jati hun.....thnx
Deleteवाह क्या खूब लिखती है अपर्णा जी शब्दों का चयन बहुत खूब सुरती से किया है ...इस रचना ने मन के भीतर तक पहुच मुझे झंकृत किया है ...अपनी जिन्दगी अपनी ही नहीं रह जाती,उसका भविष्य उससे लुकता-छिपता है,...वाह ..एक स्त्री मन की व्यथा को शायद एक स्त्री ही सही मायनो में समझ पाती है ...बहुत बहुत साधुवाद ...शुक्रिया ...आपको श्रेष्ठ रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteaapko rachna achhi lagi,mai safal hue.....thnx ji...
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ReplyDeleteबहुत अच्छी और सटीक अभिव्यक्ति ,चूँकि आप खुद महिला हैं तो इसे कलम से नहीं दिल से लिखा है। सारी जिन्दगी भागते कटती है अपने आप को साबित करने में ,अपने अस्तित्व और वजूद की रक्षा में उम्र गुजर जाती है। उचक उचक पुरुषों के काँधे तक पहुँचने में ही जिन्दगी रीता हो जाती है। एक लड़की जितना भी पद लिख ले उच्च पद पर पहुँच जाए पर चुहिया से लड़की बनी कहानी की तरह आखिर में चुहिया ही साबित होती है। पता नहीं भगवन औरत को किस मिटटी से बनाता है की सब हारने के बाद भी वह त्याग करने में पुरुष से हमेशा जीतती ही है।
ReplyDeleteआपने बस दिल की दबी चिंगारियों को हवा दे दिया सखी .
itne achhe cmnt,abhibhut hue ji...chingari kab shola banegi....kuch logon ne kuch prakriti ne....kiya...thnx ji
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ReplyDeleteस्त्री को आपने एक नई तरीके से परिभाषित किया है -उसको सर्वगुण संपन्न बनाकर भी उसे आश्रित बना दिया -क्या है ईश्वर की मर्जी ? बहुत अच्छी रचना
latest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
aap yaha tak aake sarahen....thnx....net problem ke karan mukhatib nahi hun..
Deletenet problm ke karan nahi aa pae......dhanybad aapko
ReplyDeleteअनजाने में ही सही,
ReplyDeleteअपने विरुद्ध अपनों को खड़ा करेगी। .
सही कह रही हैं अपर्णा जी। बहुत सुंदर स्त्री को साकार करती रचना।
ji Aashaji yek stri hi is manobhaon ko pakad payegi...thnx ji......
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार - 15/09/2013 को
ReplyDeleteभारत की पहचान है हिंदी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः18 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
bahut achhi prastuti thi.....thnx
Deleteस्त्री मन के विभिन्न आयाम लिखे हैं आपने ... ये सच है की उसका कोमल मन स्वार्थी नहीं हो पता .. ओने विरुद्ध अपनों का ही षड्यंत्र नहीं देख पाता ... पर उसे जागना होगा ... कठोर होना होगा ...
ReplyDeleteji Naswaji...aapne sahi kaha...par stri jinhe rishton me dhalti hai,khoon-pasine se sichti hai unke prati jald kathor nahi ho pati.....thnx ji
Deleteस्त्री की परिभाषा को परिभाषित किया है आपने आज के परिवेश मै ,बिल्कुल सही कहा आपने .
ReplyDeletethnx spjain ji....aapne mere prayas ko saraha..
Deleteबहुत ही गहराई से स्त्री के अस्तित्व व व्यक्तित्व का परिचय करवाती..बेहतरीन रचना।।।
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